"" अनेक रंग ""
"" अनेक रंग ""
विभिन्य रंगों से यह दुनिया सजी है ,
सब एक होकर भी लगते अलग -अलग हैं !!
कोई अपनी उलझनों में उलझा हुआ है !
बंद कमरे में रहकर भी दूर की सोचता है !!
हम तो फूल हैं इसी उपवन के परवरिश हमारी एक जैसी !
पर रंग रूप सुंगंध हमलोगों की मिलती नहीं एक जैसी !!
कोई लिखता है कोई पढ़ता है कोई मौन रहकर भी कुछ कहता है !
किसी की आंखे बोलतीं हैं किसी के अंगोंकी भंगिमा से बातें झलकतीं हैं !
सब लोग अपने में निपुण हैं !एक जैसे सबके सब हो नहीं सकते !
स्नेह ,तालमेल ,समर्पण के बिना हम कभी भी रह नहीं सकते !!