तलाश
तलाश
क्यों ज़िंदगी बार-बार, आस पास होने की बात करती है,
तलाश करती लम्हा-लम्हा, मंजर दिखने का इंतज़ार करती है।
दिल की अँधेरी तंग गली में, अक्सर आवाज की पहचान करती है।
तेरी एक मुलाकात के लिए, ज़िंदगी भर सिर्फ इंतज़ार करती है।
फ़रिश्ता तू नहीं , पता नहीं जानती है शायद,
फिर क्यूँ तुझे फ़रिश्ते की पहचान देती है।
ख़ुदा से करती इबादत , तेरे हसीं ख़्वाबों की शायद,
फिर क्यूँ तुझसे झगड़ने की, मुझसे बात करती है।
अक्सर मुस्कराहटें तेरी याद की, चेहरे पर उसके बिखर जाती,
समझ कर अपना, मुझसे प्यार की बातें कर जाती।
समंदर सा हर दरिया समेटे रहता उसकी बात का,
जवाब देता हर वक़्त , अजीब उलझे तेरे सवाल का।
पता नहीं क्यों मुलाकात पूरी हो नहीं पाती,
मशाल सुलघती जरूर , पर पूरी जल नहीं पाती ।
यकीन फिर भी क्यूँ वक़्त पर दोनों का रहता,
दूरियाँ ख़त्म हो, एक हिस्सा दुआओं का जरूर रहता ।
मेरे इश्क का भी वक़्त 'रजत' जल्दी आएगा,
मुमकिन हर सपना हकीकत का ख्वाब बन जायेगा।
तलाशे-जूस्तजू इनामे-मंजर की शक्ल लेगी,
फ़रिश्ते से एक दिन जिन्दगी भी रूबरू होगी।