माँ
माँ
इश्वरिये कला ,क्या विस्तार करूँ ,
बेशर्ते मोहोबत ,क्या इज़हार करूँ!
खुदा की पूजा,क्या आराध्य करूँ ,
उस अतुल्य अवतार को,नतमस्तक प्रणाम करूँ!
आँगन की चार दिवारी जिसका सार रही,
घूँघट की ओट जिसका मान रही!
कुँए -खेत जिसकी सफ़र में थकान रही,
माँ, तेरी जिन्दगी मेरे वर्तमान का आधार रही!
अब वक़्त करवट ले चुका है,खेत-दफ्तर बन चुका है!
सफ़र चाँद से आगे अक्सर होते हैं,
इंजेनियारिंग,डाक्टरी,मैनेजमेंट में चर्चे आम होते है!
ममता-अनमोल तोहफा हर बार देती हो,
सुख-दुःख की बिजलियों में सोम्य रहती हो!
काँटों भरी राह-जख्मो को मरहम देती हो,
माँ,तेरी मौजूदगी 'रजत' को जीने की वजह देती है!