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usha yadav

Abstract

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usha yadav

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आज फिर निकले हैं आंसू

आज फिर निकले हैं आंसू

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आज फिर यूं ही निकले हैं ये आँसू

सोचकर तेरी यादों के काफिलों 

का वो परचम।

 

धुल सी रही है ये लालिमा इन आंखों से

 देखकर तेरे दर्पन की शैतानियां को 


आज फिर यूं ही हुआ है कुछ लिखने

का फिर से मन जैसे धुंध भरी

सुर्खियों में दिख रहा हो दूर से 

पास आता हुआ तुम्हारा प्रतिबिंब 


आज फिर यूँ ही चकित हुआ है ये मन 

जैसे चंदन की सुगंधित शाखाओं में 

लिपटा हुआ है कोई भुजंग।


आज फिर यूं ही निकले हैं फिर से 

ये आंसू जैसे ढलती हुई रातों में 

सहसा धंसकर तेरी यादों ने बींध

दिया हो मेरा पूरा ये देह। 


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