चांदनी
चांदनी

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देखा एकदिन डूबते चांद को
छिटक रही थी चांदनी जैसे
नभ के बादलों के समान,दूधिया
मेखलाओं की श्वेतिमा लिए
छट रहा था उसका दूधिया रंग
अस्तित्व हीन निगाहों की पीड़ाओं
के संग
बड़ा वेदनाओं से भरा दृश्य
जैसे लपलपाती हुई किरणें
सिमटकर उद्वेलित कर रही हो
निहारती आंखों को
उषा!