खामोशी
खामोशी
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आज मन में फिर वही खामोशी है
यह खामोशी है, या मेरे मन
का अंतर्द्वंद
जब यह खामोशी बातें करना
चाहती है, तो जैसे शब्द ही
बिखर जाते हैं
खो जाते हैं जैसे शब्द मन के
इधर-उधर उन कोनों में
परंतु बोलना चाहती है ये खामोशी
मधुर स्वप्न के उन स्वरों को
जो निरुपाय होकर
कहीं बिखर चुके हैं।