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usha yadav

Others

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usha yadav

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बेचैन सी

बेचैन सी

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आजकल बेचैन सी रहती हूं 

ना ही रोती हूं और ना ही चिल्लाती हूं 

क्योंकि अब मैं टूटना नहीं 

खुद में पिघलना चाहती हूं 


कभी मिल ओ जिंदगी तू मुझे 

तो तुझे बताना चाहती हूं 

क्या क्या छिना है तू ने 

उसका हिसाब लेना चाहती हूं

 

कैसे तूने मुझे तोड़ा है 

एक के बाद एक करके 

बस! अब मैं टूटना नहीं 

खुद में सिमटना चाहती हूं 


क्योंकि आजकल बहुत

बेचैन सी रहती हूं।


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