नौसिखिए आशिक़ की आत्मकथा
नौसिखिए आशिक़ की आत्मकथा
गहराई नापी नहीं
और इश्क के समन्दर में कूद गए
हाथ पांव बहुत हिलाए
मगर हम और डूबते चले गए
जज्बातों की कश्ती में उदासियों के सुराग थे
हौसलों की पतवार भी टूट कर बिखर गई
यकीन का माझी भी लाचार खड़ा था
इश्क का जुनून जाने कहाँ गुम हो गया
नया नया तैराक था
नियम कायदों से बिल्कुल अंजान
कोशिश तो बहुत की संभलने की
मगर संभल न पाए
देखा जब हम अकेले नहीं थे डूबने वाले
हमसे दीवाने और भी थे यहाँ छटपटाने वाले
तो थोड़ी-सी आशा की किरण जागी मन में
डुबाने वाले बहुत थे
बचाने वाला कोई कमबख्त नज़र नहीं आया
तसल्ली सिर्फ़ इस बात की थी कि
छटपटाहट की कतार में हम अकेले नहीं
मनचले आशिक़ और भी थे
इश्क की दीवानगी क्या होती है
जब ख़ुद डूबे तो पता चला।

