क्यूँ ठहरा - सा आँसू लगे?
क्यूँ ठहरा - सा आँसू लगे?
लो छीन लिया, जो छीन लिया
अब आरज़ू की क्या बात करूँ?
उफ़ क्या हालत ऐसी भी है,
जो तन्हाई में बरसात करूँ?
जो मुझको कुछ समझा नहीं
हर पल वो मुझसे इतराता रहा
अब बड़ी सहज की बात करूँ क्या?
वो दूर होकर भी सताता रहा ।
मैं इक पल उसको क्यूँ भूलूँ?
ये मेरा आँसू थम क्यूँ जायें?
आज झिलमिलाने दो इन बादलों में,
ये ठहरा आँसू सूख क्यूँ जायें।
कोई तो समझे ये प्यार का है भूख!
ये बातें सुनकर उनकी आँखें तो जगे
ये दर्द कितना भी हो, सहन करूँगा!
पर क्यूँ ठहरा - सा आँसू लगे?