अजीब दास्तां है ये
अजीब दास्तां है ये
कितनी अजीब सी बात हो रही है
मैं बहुत बदल रही हूं, मैं इस बात से बहुत अवगत हूं ।
मैं जो भी कर रही हूं, वो नहीं करना चाहती, मगर फिर भी मैं कर रही हूं
क्योंकि मेरे शरीर को ये ज़रूरी लग रहा है।
ये एक जाल है , जो मुझे और फांसते जा रहा है ।
मेरी इच्छा के विरुद्ध , मेरे फैसले के विरुद्ध और मेरे अंतरमन के विरुद्ध।
लेकिन मुझे इसे रोकना होगा ।
कुछ है जो मुझमें बढ़ रहा है।
निरंतर बढ़ता जा रहा है।
गुस्सा, मुझमें बहुत बढ़ गया है
इतना ज्यादा कि मुझे शांत करने में ख़ुद को बहुत समय लगता है।
मुझे समझ नहीं आता ये सब मैं किससे कहूं
मगर बस , ये मुझे और भी खतरनाक बनाता जा रहा है।
मेरी सारी मुस्कानें, अब झूठी और दिखावटी होती जा रही है।
मुझे लोगों से चिढ़ होने लगी है।
बचपन के वो सारे घाव और ज्यादा दिखने लगे हैं।
मुझे फिर से घबराहट होना शुरू हो गई है।
वो चंदन जिसे सिर्फ मैं खुद को शांत रखने के लिए लगाती हूं
अब वो काम नहीं करता ।
चांदी भी अब अपना असर नहीं करता ।
मेरा दिल पत्थर जैसा कठोर होता जा रहा है।
मुझे एक पल सब त्यागने का मन करता है
तो एक तरफ सबकुछ खत्म करने का मन करता है।।
कितना अजीब है ये ।।
बहुत ज्यादा अजीब।
