आधे अधूरे
आधे अधूरे
मुझे कुछ अवशेष मिले हैं अपने अतीत के
जिनमें बहुत सी अधूरी चीज़ें हैं , या कह लो कि वो अतीत ही अधूरा है।
अब सब कुछ इतना अधूरा है कि मैं अपना हर काम अधूरा छोड़ने लग गई हूं।
सब कुछ अधूरा लिखा होगा शायद
तभी तो, मैं हर वक्त खुद को अकेला महसूस करती हूं।
अधूरी ख्वाहिशें , अधूरा विश्वास, अधूरे शौक , अधूरे रिश्ते ,
अधूरी दोस्ती , अधूरा प्यार , अधूरी कहानियां और
फिर अंत में शेष बची आधी अधूरी मैं।
ख़ुद के टूटे हुए टुकड़ों को समेटती हुई मैं।
कहानियां तो बहुत है मेरे जीवन में, मगर उनका अंत नहीं हुआ कभी भी ।
वो बस चलती रहती है , फिर रुक जाती है , फिर चलती है।
अब किसी के बस में ये सब कैसे हो सकता है।
खैर हो सकता है कि इसी का नाम ज़िंदगी हो।