एक भाग्यशाली
एक भाग्यशाली
शिल्पकार कहूं,
मूर्तिकार कहूं या
कहूं कुशल कलाकार।
पाषाण में प्राण फूंक
अद्भुत,अलौकिक,अप्रीतम रूप गढ़ा
भावों के चन्दन से करती
वंदन-अभिनंदन बारंबार।
संपूर्ण विश्व का एक भाग्यशाली
तरूण युवा "अरूण योगीराज"ने इतिहास रच डाला।
एक ही शालिग्राम शीला को तराशकर
रामलला बालस्वरूप साथ एक-एक रूप को निखार डाला।
अस्तित्व, व्यक्तित्व, दायित्व की अमरबेल
चहुं दिस खिलकर विस्तृत हुई
जगत सराय के जन मानस में,
युग- युग तक प्रेंरक बन
प्रेंरित करेगी
ये अविस्मरणीय स्मृतियां।
एक ही प्रतीमा में प्रभु विष्णुके अवतारों को....
मत्स्य,कूर्म,वराह,नृसिंह,वामन,
परशुराम,राम,कृष्ण,बुद्ध,कल्कि
सबको बड़ी खुबसूरती से मनमोहक रूपों में र्दशा दिया।
चमत्कृति, हस्तशिल्प,मनमोहिनी मुरत के
एक ओर बजरंगबली
तो दूजी ओर श्री गरुड़ जी को तराश दिया।
ओजस्विनी आभामंडल में
सूर्यदेव संग-संग
शंख, स्वस्तिक, चक्र,गदा चिन्ह
तो बाएं हस्त धनुष-बाण धरें मुद्रा में
रमलला के बालरूप को झलका दिया।
एकाग्रचित योगदान की योग्यता
खिलकर मुस्कुराई बनकर प्रेम-प्रमाण।
धन्य हुआउपर बैठा शिल्पकार भी
भरकरसींच कर ऐसे मनु में जीवन प्राण।
होकर नतमस्तक कर रही
कोटी-कोटीधन्यवाद्,आभार ,साधुवाद
बड़भागी वो मात-पिता,कुटुंब, परिवार, समाज।
धन्य-धन्य हुआ सारा संसार,
पूर्ण ब्रह्मांड जय-जय "अरूण योगीराज।"