STORYMIRROR

Dr.Purnima Rai

Action

3  

Dr.Purnima Rai

Action

मुकद्दर का ये खेल

मुकद्दर का ये खेल

1 min
269

मुकद्दर का ये खेल मुश्किल बड़ा है

वही जीते बाजी जो जिद पे अड़ा है।


भरोसा रखा खुद पे जिसने हमेशा,

मुसीबत घड़ी में वो जग से लड़ा है।


बगावत पे उतरा वतन का परिन्दा

गुलामी में जकड़ा वो तन के खड़ा है।


वतन में लगी आग गद्दार से ही,

बचा लेंगे भारत ये जज्बा कड़ा है। 


बुलंदी को छूता तिरंगा हमारा,

तिरंगे से दुश्मन हमेशा सड़ा है।


नमन वीरता को मुहब्बत है न्यारी,

करे प्राण कुर्बान रत्नों जड़ा है।


लकीरें मिटा दें दिखें जो दिलों में,

चमन को समर्पित मुहब्बत घड़ा है।


तमन्ना करे 'पूर्णिमा' मुक्ति जश्ने,

विधाता के कदमों में सर ये पड़ा है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Action