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स्वराक्षी swrakshi स्वरा swra

Romance Tragedy Classics

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स्वराक्षी swrakshi स्वरा swra

Romance Tragedy Classics

अनकहे लम्हें

अनकहे लम्हें

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जान !

क्या मैं अब भी हूँ

तेरी यादों में

या तेरे दिल के अंधेरे कोने में कहीं

छुपके, दुबकी सी बैठी हुई

कि कहीं किसी की नज़र न पड़ जाए 


और ये जो प्रेम कभी- कभी

जुगनू बन कर जलता बुझता है

बंद न हो जाए

कहो प्रिय ?

क्या अब भी गूंजती हूं मैं

मधुरिम स्वर बन कर

तुम्हारी तन्हाइयों में

गोद में तुम्हारा सर ले


थपकी देकर तुम्हें सुलाने को

या कि खुशबू बन कर तेरी सांसों में समाने को...

अच्छा ये बताओ

क्या अब भी होती है महसूस

मेरी छुअन,

क्या अब भी अंकित है मेरा प्रेम 

तुम्हारे अंग अंग में

या भूल चुके हो सब कुछ ही

वो प्रेम,वो झगड़े


वो तड़प और समर्पण

या तोड़ चुके हो स्नेह का

स्वर्णिम वो दर्पण ?

क्या अब भी जगाते हैं

एहसास तुम्हारे दिल में

नजरों से गुजरती हुई मेरी तस्वीर

या फेर लेते हो अपनी नजरें


या की मूंद कर पलकें ढूंढते हो

मुझको अपने ही आस -पास

और तब

हां तब ही देते हैं सबूत मेरे प्यार का

तुम्हारी बंद आंखों से बहते कुछ महीन से धाराएं......

कहो ये सच हैं न

क्योंकि,

कुछ अनकहे लम्हें

कह जाते हैं बहुत कुछ.....


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