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chandraprabha kumar

Classics Inspirational

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chandraprabha kumar

Classics Inspirational

यात्रा- हिमगिरि की

यात्रा- हिमगिरि की

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हिमाद्रि शिखरों में विराजित पुण्य धाम

माया की क्रिया शक्ति सर्वत्र विराज रही,

प्रशान्त एकान्त निगूढ़ सुरम्य स्थानों में

क्रिया- शक्ति प्रक्षीण दिंखाई नहीं देती। 


प्राकृतिक सौन्दर्य की मधुरिम सुषमा

पर्वत की पूर्वी तराई में विराज रही,

तृण पौधे वृक्ष लतायें फल फूल रहे

पर्वतों से जल धाराएँ प्रवाहित हो रहीं। 


हिमाच्छन्न शिखर से ऊँची आवाज़ में

गिरने वाली अति शीतल जलधाराएँ,

रंग- बिरंगे विकसित कुसुमों से

नाना प्रकार के पौधों से परिपूर्ण वन। 


परमात्मा का कर कौशल 

उस उपवन का सुषमा विलास,

ईश्वरीय महिमा का विस्तार निर्मल

झरनों के रूप में बहने वाला ईश्वर ही तो है। 


नदियॉं बह रहीं,वायु चल रही

सूर्य प्रकाशित हो रहा,

जब जड़वर्ग यों व्यापारेन्मुख हो

तो चेतन वर्ग का क्या कहना।


पक्षी उड़ रहे हैं, चहक रहे हैं

पशु मैदानों में विचर रहे हैं,

मनुष्य भी अपने अपने कामों में संलग्न 

सर्वत्र कर्म ही कर्म है,यह सहज स्वभाव ।


हिम संहति की कान्ति

इस पुण्यधाम की सुन्दरता को

और अधिक बढ़ा रही है, यात्रा है कठिन

पर यहॉं पहुँच अन्तःकरण की शुद्धि हो जाती। 


ईश्वरीय तेज से अत्युज्ज्वल रूप से शोभित

प्राकृतिक सौन्दर्य प्रशांत गंभीर है,

यह हिमाचल की ज्ञानभूमि है,

और दक्षिणी प्रदेश की तरह कर्मभूमि है।


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