आज फिर
आज फिर
आज फिर रात ने मुझे गले लगाया है,
आज फिर उसने मुझे तन्हा पाया है,
बंजर इस दिल पर सुर्ख लाली वो लाई थी,
जैसे खेतों पर मेघा बन, हरियाली छाई थी,
गुज़िश्ता सालों की वो, कुछ ठंडी पुरवाई थी,
जैसे मेरी तन्हाई में, आज बदरी उमड़ आई थी,
कुछ बेज़ारी सी भी अब, हमको होने लगी थी,
उसकी आने की आहट भी, अब धुंधली हो चली थी,
ख्वाबों की चादर को लपेटे, आँखें अभी बंद हो पायी थीं,
उम्मीद की किरनें शायद उस पार नज़र आई थीं,
आज फिर रात ने मुझे गले लगाया है,
आज फिर उसने मुझे तन्हा पाया है।

