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Rashmi Sthapak

Classics

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Rashmi Sthapak

Classics

पारिजात

पारिजात

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रातों को रहो न

ज़हन में

जज़्बात की तरह

महक जाओ फिर सुबह

पारिजात की तरह


कभी इतमिनान बन जाओ न

इतवार की तरह 

झूठा वादा

ही कर दो कोई

सरकार की तरह

 

या कभी सुबह-सुबह

आ जाओ न

अखबार की तरह

और देर तलक ठहरो 

ख़याल-ए-यार की तरह


कभी ढल जाओ इक

शाम रूमानी की तरह

सुला दो न मुझे

परियों की

कहानी की तरह


या कभी समेट लो 

मुझे समंदर की तरह

हार कर ख़ुद को

जीत लो न मुझे

सिकंदर की तरह....


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