पारिजात
पारिजात
रातों को रहो न
ज़हन में
जज़्बात की तरह
महक जाओ फिर सुबह
पारिजात की तरह
कभी इतमिनान बन जाओ न
इतवार की तरह
झूठा वादा
ही कर दो कोई
सरकार की तरह
या कभी सुबह-सुबह
आ जाओ न
अखबार की तरह
और देर तलक ठहरो
ख़याल-ए-यार की तरह
कभी ढल जाओ इक
शाम रूमानी की तरह
सुला दो न मुझे
परियों की
कहानी की तरह
या कभी समेट लो
मुझे समंदर की तरह
हार कर ख़ुद को
जीत लो न मुझे
सिकंदर की तरह....
