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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Classics Inspirational

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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Classics Inspirational

कल्पना

कल्पना

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कल्पना को कर साकार अपनी कल्पना वह बन गयी।

खोज कर अन्तरिक्ष में, कितने नवागतों को राह नयी दे गयी।


कवि की कल्पना यदि है उदासिनी, एक कदम न बढ़ पायेगा।

गीत छंद सो जाते गर, कैसे फिर संगीत सा सजीव स्वर गुनगुनाएगा? 


कल्पना की भर उड़ान कोलम्बस खोज भारत की कर गया।

कल्पना के रथ में हो सवार इंसा जीवन की पहेली हल कर गया।


कल्पना ने ही ईश्वर को मूर्त रूप दे पत्थर में साकार कर दिया।

कल्पना कल्पवृक्ष,स्मृति की सहेली बन जीवन उमंग से भर दिया।


विज्ञान में बुद्धि,विचलन में धैर्य, जुगनू अंधेरे की,दर्शन की दृष्टि हो।

दुख मे सुख की अनुभूति देने वाली कवि की कल्पना की सृष्टि हो।


कल्पना जादू है उसकी सधी तूलिका में भर रंग नव आयाम दे।

कल्पना से कर निर्माण भविष्य का, हर जीवन को मान दे।


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