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Madhur Dwivedi

Classics

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Madhur Dwivedi

Classics

बचपन

बचपन

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बचपन का वो वक़्त भूले ना भुलाता है,

वो आँगन का झूला आज भी हमें बुलाता है।


कहने को तो बहुत बड़े हो गए है हम,

लेकिन जाने क्यूँ मन बार बार बच्चा बन जाता है।


जब सभी अपने थे कोई गैर नहीं था,

राम और रहीम में कोई बैर नहीं था।


हाथी घोड़े के खेल में जब वक़्त गुजर जाता था,

चार आने का सिक्का भी तब खज़ाना नजर आता था।


जब हँसने के लिए कोई वजह नहीं थी,

जिंदगी की किताब में गम की कोई जगह नहीं थी।


सपने देखने पर कोई पाबन्दी नहीं थी,

खुशियाँ खरीदने की तब कोई मंडी नहीं थी।


मोहल्ले के सभी घर अपने हुआ करते थे,

क्या दिन थे वो भी, जब हम बच्चे हुआ करते थे।


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