समुद्र मंथन
समुद्र मंथन
फिर हो रहा है एक समुद्र मंथन आज,
लेकिन इस बार देव -दानव में कोई
फर्क नहीं है।
सब की अपनी अपनी कामना है, लालसा है,
सब बाट जोह रहे हैं अपने प्रसाद की,
खड़े हैं गिद्धों की तरह ताक में ,
कब मिले, तो उदरस्थ करें, और
अपने घर चलें।
हलाहल विष पीने के लिए नहीं है
कोई महादेव इस बार,
तो पकड़ लाये हैं वो किसी को अवतार
बता कर।
मैं पूछ रहा हूँ उससे की रे मूर्ख पता भी है
ये हलाहल है, विष है, नाश कर देगा तुम्हारा
हँसा वो, और कहने लगा कि गरीबी के दंश
से बड़ा नहीं है।
नशा हो सकता है लेकिन नाश नहीं।
मैंने पूछा है कौन तू, कहानी क्या है तेरी,
तो बस ये बोला..
कहानी तो है पर कहने से लाचार हूँ,
में जनता हूँ, मज़दूर हूँ, बेगार हूँ ।
