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manisha sahay

Classics

5.0  

manisha sahay

Classics

वसुधैव कुटुम्बकम

वसुधैव कुटुम्बकम

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आईये गीत नये गुनगुनाएं,

सर्वधर्म सद्भाव को बढ़ाएं, 

रास्ता सब धर्मों का तेरा-मेरा,

पहुंचाए एक ही मुकाम पे, 


आईये नये कुछ उसूल बनाए, 

नफरतों की हर दिवार गिराएं, 

धर्म-जाती के भेद मिटा कर, 

एक दुजे को गले से लगाएं,


सर झुकता इंसान का वहाँ,

जहाँ प्यार की होती दुआएं,

एक रक्त बहे सभी रगों में,

इसे बेकार बेवजह ना बहाएं,


कितने युद्ध लड़े दुनिया ने, 

फिर शांती की ओर लौट आए, 

कट्टरता की हर सोच मिटाएं,

मानवता सेवा संकल्प दोहराएं, 


हिंदुस्तान एक पावन स्थल है,

हर धर्म, विचार का आदर है, 

इसमे समाहित हो जाते सभी, 

जैसे विराट धर्मों का सागर है, 


हर देश-दुनिया का संकुचित,

सोच, विचार धर्म पर निर्भर है,

हमने सदियों पहले विश्व को, 

दिया संदेश वसुधैव कुटुम्बकम है।


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