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Rita Jha

Abstract Classics Inspirational

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Rita Jha

Abstract Classics Inspirational

कबीरा खड़ा

कबीरा खड़ा

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 कबीरा खड़ा बाजार में माँगे सबकी खैर !

न कोई दुश्मन है न रखूँ मैं किसी से बैर !


भरोसा अपने कदमों पर है चलता हूँ धीमी चाल।

सीखा है ढाई आखर प्रेम का जो करता है कमाल।


पोथी कभी पढ़ी नहीं, पकड़ा नहीं लेखनी हाथ,

अल्फाजों के दम पर मिला चाहने वालों का साथ!


मोती माणिक से घर भरा, संतोष नहीं जिनके माथ।

कहत कबीर दीन हीन पर रहे दया, मिले समाज का साथ।


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