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Dr.Shree Prakash Yadav

Abstract Romance Classics

4.0  

Dr.Shree Prakash Yadav

Abstract Romance Classics

जीवन

जीवन

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मैं देख रहा

पतझड़ जैसे जीवन को

झरते

पर चुप हूँ,

 

नव किसलय की 

आश लिए हूँ.

वह भी चुप हैं.

मगर.


उसके भीतर.

बसंत है।


मित्रों.

अंतर को समझना होगा.

खाई को पाटना होगा।


वरना

आया राम 

गया राम

कहकर 

सिर्फ.

हाथ मलना होगा।


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