जीवनगत अनुभूति
जीवनगत अनुभूति
आहिस्ता चल 'ज़िंदगी', अभी
कई कर्ज चुकाना बाकी है
कई दर्द मिटाना बाकी है
कई फर्ज निभाना बाकी है।।
बेड़ियों को तोड़ने में
कुछ रूठ गए
कुछ टूट गए
कुछ छूट गए।।
रूठों को मनाना बाकी है
टूटों को जोड़ना बाकी है
छूटों को मिलाना बाकी है
रोतों को हँसाना बाकी है।।
कुछ रिश्ते बनकर टूट गए
उन टूटे-छूटे रिश्तों पर
मरहम लगाना बाकी है
जख्मों को भरना बाकी है।।
कुछ हसरतें अभी अधूरी हैं
जीवन गत अनुभूत की पहेली को
अंतिम सांसों की डोर तक
छोर तक ले जाना बाकी है।।
जब सांसो को थक जाना है
फिर क्या खोना क्या पाना है
पर मन के जिद्दी पन को
यह बात बताना बाकी है।।
आहिस्ता चल...........