ईर्ष्या
ईर्ष्या
ईर्ष्या, जलन, व्यथा,
अन्तस्थ की अनकही कथा,
भाव हृदय के,
कैसे हृदय में उमड़ आते हैं,
किस तरह हम,
गहराइयों में उतर जाते है,
द्वेष, घृणा, अवसाद,
जीवन में प्रबल हो पातें है,
मोह, नेह, प्रेम के,
बंधन क्षीण पड़ जातें है,
ईर्ष्या, जलन ,वेदना,
के भाव जब गहराते है,
बहन, बहन नही,
भाई, भाई के शत्रु बन जातें है,
यें ईर्ष्या के भाव ,
मेरे मन में भी उमड़ आता,
यदी मुझे भी भाई, बहन,
का साथ मिल पाता,
एकाकी परिवार की,
एक ही बाला हुँ,
हर किसी से मुझें,
इस जीवन में ईर्ष्या है,
मेरी सहेली के बाल,
उसका छोटा भाई खींचता है,
बगल फ्लेट में भी,
रोज कोई ना कोई झगड़ा है,
खट्टे मीठ पलों से ,
जीवन उनका खुशहाल है,
मेरे मन में आज तक,
जाने कहाँ छुपा ये उदगार था।