भीड़
भीड़
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भीड़ का चेहरा नहीं,
साकार रूप है यही,
चल देते पीछे सभी,
पहचान पर कोई नहीं,
भीड़ बन चल रहे सभी,
मशीन बन संतुष्ट यहीं,
विवेक बुद्धि चुप रही,
सोच अब कुछ भी नहीं,
कितनी मुट्ठी, कितने हाथ,
चेहरों पर डाले नकाब,
रूप कर रहा हाहाकार,
उग्र विनाश और विकराल,
सड़कों पर हो रहा न्याय,
बेहाल व्यवस्था, चुप समाज,
मानव पतन या विकास,
सोचें सभी मिलकर आज...