कथा रघुकुल की
कथा रघुकुल की
प्रथम जन्म लिया मंधाता ने,
देवराज सुरेश को पराजित किया।
वैदिक काल में अपराजित थे यह,
अरे! इनका गुणगान करो रे।
फिर आये सागर राजा,
उन्होंने अश्वमेध रचाया।
भयभीत इंद्र ने मुनिवर कपिल को उनके विरुद्ध खड़ा किया,
साठ हज़ार पुत्र खो बैठे, यह दुख है या कोई माया।
सत्यवादी, महान हरिश्चन्द्र,
न्यायप्रिय दिलीप।
सागर के पुत्रों को मुक्त कराने,
भागीरथी को लाए धरती पर, भागीरथ।
समय आया रघु जी का,
उनपर ही किया गया है इस महान कुल का नामकरण।
उनके पुत्र ने भी गौरव बढ़ाया,
नाम अज आज भी है स्मरण।
दस दिशाओं में चला सकते थे रथ,
इसलिए नाम पड़ा, दशरथ।
सदा न्याय के संग थे वे,
पुत्र को वनवासी बनाकर, रघुकुल रीत को पूर्ण किया उन्होंने।
अब भगवान की बारी आई,
संसार में खुशियाँ छाई।
धर्म के प्रतीक थे श्री राम और उनके तीन भाई,
उनके साथ सदा, कठिन मार्ग में भी, चली सीता माई।
जब रघुकुल नायक ने किया अश्वमेध यज्ञ,
मिले उनके दों पुत्र।
भविष्य में लव ने दक्षिण कोसल पर राज किया,
और कुमुद्धति वर कुश ने उत्तर कोसल पाया।
अनेक राजा आए पर ईश्वर के पिता की बात करेंगे,
बुद्ध के पिताश्री, सुद्धोधन भी रघुवंशी थे।
अंत में अयोध्या में अंतिम रघुवंशी नृप ने राज किया,
सुमित्र के नाम से समाप्त हुई इस कुल की महा लीला।
एक महान कथा,
एक महान गाथा।
ईश को भी एक बार जन्म लेकर तृप्ति नहीं मिली,
यही है कथा रघुकुल की।
_____________________________________
