गुरु
गुरु
मानती हूँ, जीवन है संघर्ष,
यदि वह थामे हमारा कर, तो मन में भर जाता है हर्ष,
उज्ज्वल होता है तन-मन यदि मिले एक स्पर्श,
जहाँ वह अपने दिव्य पद रखे, धन्य हो जाता है वह फर्श।
गुरु, यदि ना होता यह नाम,
तो हम होते केवल बदनाम,
यदि ना होता वशिष्ठ का अभिराम,
तो ना होते मर्यादा पुरुषोत्तम राम।
है यह संसार अनेकार्थ,
भरा है इसमें स्वार्थ,
किन्तु जो ज्ञान बाटता है, वो होता है कृतार्थ,
श्री कृष्ण का ज्ञान पूरी सृष्टि ने सुना, माध्यम बना पार्थ।
जिसे ज्ञान बाँटकर मिलती है संतुष्टि,
वो है गुरु जो बदलते है शिष्यों की दृष्टि,
माधव ने जब किया था धर्म की पुष्टि,
तब प्रत्येक जीव की बदल गई थी सृष्टि।
अब आप मुझे बताएँगे कि
मैं किसको दे रही हूँ पुरस्कार,
उस महान गुरु को जिसने हमें बताया
और समझाया जीवन का आधार,
या उस परमेश्वर को जिसने हमे दिया आकार,
वास्तव में किसने किया हमारा उद्धार ?
सिखाया हमें उचित शिष्टाचार और
उनका जीवन बना प्रेरणा स्त्रोत्र हमारा,
उत्सुकता बढ़ी की लगने लगा हमारा नयन तारा,
यदि गाय को लगा दिया जाए चारा,
तो क्या उसने घास को मारा?
गुरु सबसे महान है होता,
गुरु के सामने सब है छोटा,
गुरु हमारे बाहर बनाता है परकोटा,
या बन जाता है मर्यादा में रखने वाला जोटा।
उस गुरु को शत-शत प्रणाम,
जो हम बनते है उसके संघर्षों के परिणाम,
होता है महान निरोध परिणाम,
गुरु आपको मेरा प्रतिप्रणाम।
