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Rudrakshi Das

Inspirational

4.7  

Rudrakshi Das

Inspirational

माँ

माँ

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सरलता से कह देते है, माँ,

किन्तु इसका अर्थ क्या ज्ञात है आपको?

क्यों है यह माँ,

क्या विचार आया है कभी आपको?


ममता की मूरत होती है माँ,

हम जिसकी परछाई है, वही है माँ।

जीवन की सूरत होती है माँ,

जो छाई रहती है हमपर, वो होती है माँ।


केवल जन्मदातिनि माँ नहीं,

जो प्रेम से पाले-पोसे, वही माँ है।

जैसे कृष्ण की माँ, केवल देवकी कहलाती नहीं,

नंदलाल की माँ, यशोदा भी है।


जो जीवन देती है, वो होती है माँ,

जो कर्तव्य पथ पर चलना सिखाती है, वो होती है माँ।

जो संतान को उचित-अनुचित के मध्य भेद करना सिखाती है, वो होती है माँ,

जो हमारी प्रथम गुरु है, वो होती है माँ।


एक पंछी जन्म के पश्चात,

रहता है नीड़ में, जिसके निर्माता है उसके मात और तात।

किन्तु जैसे ही वो थोड़ा बड़ा होता है,

माता पंछी अपने संतान को मुक्त कर देती है।


कभी सोचा है क्यों?

क्योंकि वो भी जानती है, 

कि यदि उसका शिशु मुक्त नहीं होगा,

वो कभी उड़ नहीं पाएगा।


ऐसे ही, एक नई विचारधारा देती है हमें हमारी माँ,

संयम शक्ति देती है हमें हमारी माँ।

संस्कार देती है हमें हमारी माँ,

सृष्टि में एक स्थान बनाने की योग्यता देती है हमें हमारी माँ।


तो फिर माँ क्यों है?

उत्तर है - अब क्या बताऊँ, कण-कण में माँ बसी है।

प्रकृति, धरती, आकाश, वायुमंडल, अंतरिक्ष,

अनंत तक और संसार के अंत तक, माँ बसी है।


इस संसार की रचना माता आदि-पराशक्ति,

अर्थात एक माँ ने की है।

जीवन के हर दुख, पीड़ा, कष्ट का अंत,

एक माँ ही कर सकती है।


जननी कोई जन्म देने से नहीं,

माता तो भावनाओं से बना जाता है।

तभी तो वात्सल्य रस में झलकती है यह,

इनके समक्ष तो ईश भी झुक जाते है।


भगवान को कभी किसी की भी कमी नहीं,

वो स्वयं में ही परिपूर्ण है।

किन्तु अपना कर्तव्य निभाने,

उन्हें भी कौशल्या, देवकी और माया की आवश्यकता है।


माँ के क्रियाओं का वर्णन,

किसी काव्य में नहीं किया जा सकता है।

जिसका संसार में सबसे उच्च है स्थान,

उस माँ को मेरा नमन है।



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