बंधन
बंधन


सफल जीवन है क्या ?
इसका फ़लसफ़ा,
क्या कोई जान पाया है ?
महत्वकांक्षाओ की पूर्ति ,
या अधूरी इच्छाओं का
फलीभूत होना ?
विदेशों में गमन ,
या घर, परिवार, समाज़,
इन सब बंधनों से मुक्त
स्वतंत्र डोलना ?
शायद अपनी जड़ों से जुड़ना !
धागे से बंधी पतंग,
आसमान में इतराती - इठलाती,
ठुमक - ठुमक ठुमके लगाती,
सोचती मन में मुस्कराती,
है कोई मुझसे ऊँचा
क़ाश बंधनों में ना जकड़ी होती,
शायद मैं और ऊँची होती !
धागा टूटा हाथ से,
ले गयी पवन उड़ाये,
एक बार ऊपर गयी,
फ़िर झाड़ में अटकी आये
आकाश को छूने की होड़,
आकाश को पाने की होड़,
अंकुशों से परे,
ना कोई रोक, ना टोक,
स्वतंत्र बिन पेंदे के लोटे
की तरह,
जहाँ चाहूँ वहाँ जाऊँ ,
बेड़ियाँ नहीं हैं बँधन !
सफ़लता का सबब है बंधन
बंधनों की दुआओं का,
प्रतिफ़ल है सफ़ल जीवन
सफ़ल होते ही आती मैं,
"मैं" से चाहिए मुक्ति,
बंधनों से नहीं !
फलता - फूलता वही है ,
जो जड़ों से जकड़ा होता है !
मिट्टी हटी दुर्घटना घटी
अगर रिश्ते ना होते,
हम इस जहाँ में ना होते
रिश्तों की डोर के छोर को,
मज़बूती से थाम लो
ये बंधन नहीं प्यार है,
इन्हें पहचान लो
ये बंधन ही है ,
जो हमें बाँधे रखते हैं
मुसीबतों में भी,
"शकुन" हमारा हाथ
थामे रखते हैं !