एक पौधा
एक पौधा
सुनो, तुम सुन रहे हो न?
क्योंकि मिलना तो बहुत दूर,
तुमने बोलना भी छोड़ दिया है,
आत्म विश्वास बढ़ाया था तुमने,
मन की सूखी झील में
'नीलकमल' खिलाने का
पर देखो न, महज़
सात दिन में ही,
आत्म विश्वास की बखिया
उधेड़ कर रख दी।
चलो छोड़ो, अब ये नन्हा
पौधा लगाया है मैंने,
एक रिश्ते खास का,
एक दूजे पर विश्वास का,
एक अद्भुत आभास का,
स्वर्गिक अहसास का।
पतझड़ रूपी जीवन में,
बासंती हर्षोल्लास का,
प्राणवायु अपने पावन
रिश्ते की, स्वछंद श्वास का,
मूक रहकर भी नीलम,
दिल से दिल की भाष का।
देखो कितना प्यारा है यह पौधा,
हैं पत्ते कितने कोमल,
सुनो, अभी-अभी बोया है मैंने,
ध्यान रखना होगा हर पल।
कहीं कोई खरपतवार समझकर
उखाड़ न फेंके,
कहीं कोई पशु इसे चर न जाए,
पर अकेले कैसे रखूँ खयाल।
यही सोचकर नींद उड़ी,
हुआ बहुत बुरा सुन मेरा हाल,
दूर से ही सही, निगाहें रखना,
रह जाये न हृदय में मलाल
फूल-फल ये देगा हमको,
बिल्कुल नहीं सोच इसे लगाया,
यही उम्मीद है कि यह देगा,
प्रचंड धूप में, शीतल छाया।
सूख तो सभी बाँट लेते हैं,
यह सारे दुख मेरे बाँटेगा,
पर होगा मुमकिन तभी यह प्रिय,
जब तू न इसे काटेगा।
