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आस्था

आस्था

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मूरत एक स्वरूप अनेक

आस्था एक इंसान अनेक

हर इंसान के अंदर आत्मा एक..

पर उस आत्मा के सोचने के

तरीके अनेक।।

भगवान कौन है ? कहाँ हैं?

ये कोई नहीं जानता...


इंसान का विश्वास ही एक

मूर्ति को भगवान मानता,

जब कभी अंधेरा होता

वो रौशनी दिखाता

जब कभी हम गिरने लगे

वो हमें संभाल लेता,

जब कभी दुःख के

सागर में डूबने लगें हम

वो गोताखोर बन के

हाथ थाम लेता ।।


हर वो कर्म भगवान,

हर वो हृदय भगवान

जिस दिल मे इंसानियत है,

वो इंसान भगवान

अपने दुखों को भूल कर,

किसी के चहरे में

मुस्कान लाना

वो कर्म भगवान,

अपने परिवार को एक

रखना वो धर्म भगवान,

निस्वार्थ सेवा भाव होना

वो सोच भगवान।।


भगवान किसी भी रूप

में मिल सकता है

कहीं अदृश्य तो कहीं

फ़रिश्ता बन भी दिख

सकता है

जैसी जिसकी सोच

वैसा उसने उसको पाया।।


मेरी जिंदगी में भगवान

एक दोस्त बन कर आया,

दूर था पर, उसका साथ

मैंने हमेशा पाया

सोच बदली रास्ते बदले,

जिंदगी जीने के क़ायदे बदले

फिर से एक रौशनी की

किरण दिखी...

मेरी जिंदगी को

एक नयी डगर मिली।।


मेरी ये कविता उस

फरिश्ते को समर्पित

मेरी उसके प्रति

सम्मान की

सोच को समर्पित।।



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