यादों का मकान
यादों का मकान


यादों का मकान
समय के चक्के पर,
रगड़ खाकर बनता है...
उस मकान में,
अपनों का प्यार,
परिवार के साथ रहता है...
पन्ने यादों के,
हर दिन बदल जाते हैं,
पुरानी किताबों में,
एक नया पन्ना जुड़ता रहता है...
कल की परछाई,
आँखों से ओझल हो जाती है,
दबा, मुड़ा, सिकुड़ा सा लगाव,
किसी कोने में दिखता रहता है...
वक्त की डोर,
उस मकान को भुला देती है,
पर मेरा दिल आज भी,
उसी मकान में रहता है...