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manish shukla

Others

3.5  

manish shukla

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प्रकृति मां

प्रकृति मां

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भीड़ भाड़ , शोरोगुल में जब फंस जाता हूँ,

दुनिया की चकाचौंध से जब मैं घबराता हूँ,

तब तेरे आँचल में में छिप जाता हूं,

तू चहचहाती है, प्यार से लोरी सुनाती है,

हवाओं का झोंका बनकर मुझको दुलराती है।

आपाधापी की दौड़ में जब हम थककर गिर जाते हैं,

तू अपने निर्मल जल से हम सब की प्यास बुझाती है,

अपनी खुशबू से हमें महकाती है,

धरती माता कहलाती है,

जननी जन्मभूमि प्रकृति जीवन बन जाती है।


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