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Madhu Vashishta

Classics Inspirational

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Madhu Vashishta

Classics Inspirational

ढलती हुई शाम

ढलती हुई शाम

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ढलती हुई शाम बुढ़ापा ही तो है।

उगता हुआ सूरज अगर बचपन है तो

दोपहर का जलता हुआ सूरज जवानी है।

ढलता हुआ सूरज अपनी जलती हुई किरणों को समेटता हुआ संसार को शांति प्रदान करता है और चैन मैं सोने की प्रेरणा देता है।

ढलती हुई शाम परेशानी देती हैं उन लोगों को जिन्होंने अपना काम यथा समय नहीं किया।

ढलती हुई शाम परेशानी देती है उन लोगों को जिन्होंने रात को रोशनी के लिए इंतजाम नहीं किया।

ढलती हुई शाम परेशानी देती है उन लोगों को जिन्होंने रोशनी के बिना जीने का अभ्यास नहीं किया।

अन्यथा बुढ़ापा तो एक ढलती शाम है।

एक सुखद एहसास है।

काम खत्म करके सोफे पर अलमस्त बैठकर सुंदर सपनों में जाने का खूबसूरत इंतजार है।

ढलती हुई शाम की तैयारी करके रखो।

सिर्फ परमात्मा को अपना साथी बना कर रखो।

अगले दिन का उपहार मिल जाए तो समझो कुछ और काम अभी बाकी है।

हर दिन ढलने के बाद सोते हुए खुद को हिसाब दे सको

ढलती हुई शाम से पहले ही अपने पुण्य की गठरी सजा के रखो लोगों के मन में जगह बना कर रखो।

ढलती हुई शाम भी बहुत खूबसूरत है

अपने मन को पावन रखें आसमान की ओर नजर बना के रखो।



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