रंग- पीला धूप
रंग- पीला धूप
मंडप प्रभा जाल लगे
धरा गोद बाल लगे
कभी हथेली चूमती
कभी खिले सुर्यमुखी
विधाता ये अजीब सा
उद्भ्ट प्राण गीत सा
पथिक के पाश बँध कर
कविता या छन्द कर
किसी के मुख चूम कर
विश्व पूर्ण घूम कर
डरा नही घटा नहीं
क्षेत्र में बँटा नहीं
जग हुआ महान
मुग्ध आसमान
सूर्य के प्रताप से
तिमिर तेज ताप से।