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Dhan Pati Singh Kushwaha

Classics

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Dhan Pati Singh Kushwaha

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मेरा सपना

मेरा सपना

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भाग्यफल के मोह को छोड़,और कर्म से नाता जोड़

अकर्मण्यता से नाता तोड़, जीवन संग लगा कर होड़।


सपने हम सब देखते अनेक,पूरे कर पाते हैं कुछ एक

दृढ़ इच्छा पूरा करने की, और होने चाहिए इरादे नेक

लक्ष्य सिद्धि तक डटे रहें, और कभी न देवें घुटने टेक

डटे रहें कर्मयोगी बनकर, मेहनत करते रहें जी तोड़

भाग्यफल के मोह को छोड़, और कर्म से नाता।


मन लगता हो जिसमें अपना, पूरा करना है हमको वह सपना,

मार्ग में कोटि हों बाधाएं, मन विचलित करना नहीं है अपना

प्रतिफल जिसका होवे परहित,वही लक्ष्य बस हो ही वह सपना

तोड़ें हम तारे अम्बर के और, देवें हम सप्त पाताल को ही तोड़

भाग्यफल के मोह को छोड़ और कर्म से नाता।


जब प्रिय बचपन अपना था , अपना तबसे ही एक सपना था

सबके सुख-दुख तो बाॅ॑ट सकूॅ॑ मैं,न कोई पर सब ही तो अपना था

नहीं लालसा अतिरेक सुख की,मुझे पर दुख अग्नि में तो तपना था

अश्क पोंछ सकूं दुखित जनों के, प्रभु जीवन में मुझे देना वह मोड़

भाग्यफल के मोह को छोड़,और कर्म से नाता।



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