कर्म
कर्म


निःस्वार्थ भाव से कर्म करो, फल अवश्य ही मिलेगा,
खाली झोली है अब तक, अब वक़्त और कहां मिलेगा।
गुज़रता जा रहा लम्हा दर लम्हा, वक़्त ज़िंदगी का अब तो,
जाने वह कौन सा लम्हा होगा, जब हासिल होगा कुछ तो।
यह कठिन जीवन, एक तपता तपोवन ही रहा मेरे लिए,
जो बोया काट ना सका, क्षण भर की भी खुशी के लिए।
जलाया था जो उम्मीदों का दिया मैंने, बड़े ही विश्वास से,
कब का बुझ गया वह, टिक ना सका मेरे लाख प्रयास से।
मन को अपने बहला न सका मैं, लाख कोशिशें करने से,
समझ गया वक्त की नज़ाकत,
नहीं बहला मेरे बहलाने से।
जैसे कर्म करेगा वैसे फल देगा भगवान, यह है गीता का ज्ञान,
इसे गलत सिद्ध कर दिया, नेकी कर कुएँ में डाल के ज्ञान ने।
अब तो भलाई कर के भी, अंत में बुराई ही हाथ आती है,
और अच्छाई दूध की मक्खी की तरह बाहर फेंक दी जाती है।
औरों की क्या बात करें, स्वयं के बच्चे भी तो सब भूल जाते हैं,
याद रख हमारे कर्मों को, बुढ़ापे में वह साथ कहां दे पाते हैं।
इसीलिए नेकी कर और कुएँ में डाल ही आज की सच्चाई है,
जिसने इसे अपना लिया, उसने चिंता मुक्त ज़िंदगी पाई है।