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Pranshu Harshotpal

Classics

3  

Pranshu Harshotpal

Classics

महाभारत

महाभारत

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ख़ामोश रहे अगर लब तो

फिर कोई महाभारत होगा


आवेग में गर ली प्रतिज्ञा

भविष्य विवश हो जाएगा

पुत्र मोह में डूबा राजा

पूरी संतति कोसा जाएगा

हो गुरु की शिक्षा में भेद भाव

कोई कर्ण अधर्मी बन जाएगा

दासी पुत्र भी चाह ले अगर

वह महामंत्री कहलाएगा

ना ध्यान हो अगर बच्चों पर

गांधारी सा विवश हो जाओगे

और खेल को जुआ जो बनाया

पूरी संपत्ति गंवाओगे

गलत आज्ञा मानी तो

दुःशासन जैसा वध होगा

तुम घमंड अगर निकाल दो

तो कभी ना भीषण रण होगा

जो दोस्त तुम्हारा सच्चा हो

तुम नायक बन जाओगे

जो गुस्सा तुमने त्याग दिया

तुम धर्मराज कहलाओगे

तुम्हारे अंदर का रब, तब

कृष्ण जैसा ज़िंदा होगा

खामोश रहे अगर लब तो

फिर कोई महाभारत होगा


तुम कृष्ण में यादव ढूंढ़ते हो

तुम दलित - शूद्र ना छूते हो

तुम संपत्ति ओढ़े बैठे हो

तुम वस्त्र हरण अब सहते हो

जयद्रथ अश्वत्थामा के संग

अब तुम्हारी बनती है

तुम्हारी हंसी में है दुर्योधन

सोच में अब शकुनि है

कहां गीता से तुम्हे अब मतलब

सुनने में वह प्रवचन सरीखे

तुम्हारे मूल्य अब शून्य हो गए

असभ्य तुम्हारे तौर तरीके

तुम बस अपने ध्वज फहराओ

और कुरुक्षेत्र के अंश ढूंढवाओ

घर और मन से राम निकालकर

तुम जाओ कहीं मंदिर बनवाओ

वाल्मीकि या वेद व्यास ने

क्या यह सोच के लिखा होगा

ख़ामोश रहे अगर लब तो

फिर कोई महाभारत होगा !!



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