सभ्यता
सभ्यता


ये मेरी और आपकी बात ही है
जानवर तो सभ्य हैं
आज इंसान हममें है ज़िंदा,
सोचो! क्या ये सत्य है ?
कभी गुफा में नग्न रहकर
आग जलाना सीखा हमने
अध पके मांस खा खा कर
खेतों को फिर सींचा हमने
कहां वेदों की ऋचाएं, पुराण कभी
हमने महाकाव्य रचा
मिट्टी, ईंट फिर गगन तलक
स्तंभों का निर्माण किया
विद्वानों और वीरों का यहां
बखान बड़ा ही भव्य है
आज इंसान हममें है ज़िंदा,
सोचो! क्या ये सत्य है ?
मैं मां- बहनों की ही नहीं
दोस्तों की भी बात करूंगा
जो अपनी हो या औरों की
कब तक चीखें सुनता रहूंगा
यह तुम नस्लों का मसला है
तुम नस्लों से ही प्रश्न करूंगा
वासना की अंधेरी गलियों में
भटकाव से क्या हासिल होगा?
सिहर उठी है मानवता
तेरे इन कुकर्मों से
इंसानी जीवन के हक में
तौबा तो करो इन जुर्मों से
आडंबर भरा ये शानो- शौकत
नहीं यह अंतिम सत्य है
आज इंसान हममें है ज़िंदा,
सोचो क्या ये सत्य है ?