बचपन की कहानी याद नहीं
बचपन की कहानी याद नहीं


बातें वे पुरानी याद नहीं
इक बचपन का ज़माना था
जब पास मे खुशियों का खजाना था
वो फ़साना कितनी
आसानी से मिल जाता था
वो आसानी अब याद नहीं।
माँ के आँचल का इल्म तो हैं
पर वो नींद रुहानी याद नहीं।
छोटी सी बातों पर हँसते थे
झूलों पर गिर-गिर चढ़ते थे।
किसी चोट के अब निशां तो है
पर वो चोट पुरानी याद नहीं।
न सुबह की ख़बर थी,
न शाम का ठिकाना था।
ढेरों बच्चे जब आँगन में थे
था शोर शराबा आँगन में।
रोने की वजह न थी,
न हँसने का ठिकाना था।
माँ ने डांटा था चिल्लाकर।
वो डांट ज़बानी याद नहीं।
मोम क
ी कहानी थी,
परियों का फसाना था।
कितने किस्से थे दादी के
हाथों से खाना दादी के।
लाखों नखरे, कितना गुस्सा
वो शर्त पुरानी याद नहीं।
पापा से डर जब लगता था
उन्हें दूर से देखकर भागता था।
उस दिन क्यों पड़ी थी मार मुझे
उस दिन की कहानी याद नहीं।
वो बचपन के भी क्या दिन थे मेरे
ना कुछ पाने की आशा,
ना कुछ खोने का डर,
बस अपनी ही धुन,
रोने की वजह न थी,
न हँसने का बहाना था
ना कोई फिक्र ना दर्द कोई।
बस खेलो, खाओ, सो जाओ
बस इसके सिवा कुछ याद नहीं।
बचपन की कहानी याद नहीं
बातें वे पुरानी याद नहीं।