खत तो लिखा पर भेजा नहीं
खत तो लिखा पर भेजा नहीं
झुझंलाए मन से उठाई कलम
पन्ने भी ऐसे जैसे उन्होंने कोई गुनाह किया हो
लिखने बैठे आज कुछ इस तरह
जैसे किसी ने लिखने से मना किया हो
ना हाल पूछा सामने वाले का
ना अपना बताया
लिख दिया हिसाब सबसे पहले
जो सांसो का था बकाया
शिकायतों के पुल बांध दिए
जितनी कानून की किताबों में ना हो
वह अनगिनत खिताब दे बैठे उन्हें
जो जमाने के खिताबों में ना हो
लिखना तो और भी बहुत कुछ चाहते थे
मगर कलम टूट गई
लगता है मानो इस खत पर लूटाकर सबकुछ
खुद से रुठ गई
जहां पर संभाल कर रखी है उस की निशानियां
इन पन्नों को भी सहेजा वहीं
आज उसको खत तो लिखा पर भेजा नहीं।