STORYMIRROR

Omdeep Verma

Abstract

4  

Omdeep Verma

Abstract

खत तो लिखा पर भेजा नहीं

खत तो लिखा पर भेजा नहीं

1 min
437

झुझंलाए मन से उठाई कलम 

पन्ने भी ऐसे जैसे उन्होंने कोई गुनाह किया हो 

लिखने बैठे आज कुछ इस तरह 

जैसे किसी ने लिखने से मना किया हो 


ना हाल पूछा सामने वाले का 

ना अपना बताया

 लिख दिया हिसाब सबसे पहले 

जो सांसो का था बकाया 


शिकायतों के पुल बांध दिए 

जितनी कानून की किताबों में ना हो 

वह अनगिनत खिताब दे बैठे उन्हें 

जो जमाने के खिताबों में ना हो 


लिखना तो और भी बहुत कुछ चाहते थे 

मगर कलम टूट गई 

लगता है मानो इस खत पर लूटाकर सबकुछ

खुद से रुठ गई 


जहां पर संभाल कर रखी है उस की निशानियां 

इन पन्नों को भी सहेजा वहीं 

आज उसको खत तो लिखा पर भेजा नहीं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract