दौलत के अंधे
दौलत के अंधे
अरे इतने भी बेगैरत मत बनो कि
अपनी काबिलियत की कीमत लगा दो
दौलत की अंधता में इज्जतदार होकर भी
अपनी जिल्लत करा लो।
उस बाप से दहेज की मांग करते हो तुम
जिसने अपने कलेजे का टुकड़ा तुम्हें सौंप दिया
क्या दिया है कहकर तुमने उस पर
कलंक जिंदगी भर के लिए थोप दिया।
उम्र भर की पाई- पाई करके जोड़ी पूंजी से
जिसने अपनी लाडली का ब्याह रचाया
पर तुम दौलत के अंधों को उनकी
नम्रता का भाव कहाँ नजर आया
जिसन
े सारी जिंदगी टूटी साइकिल पर गुजार दी
कहां से ले दे वो कार तुम्हें।
किसी की फूल सी बेटी का तिरस्कार करते हुए
शर्म नहीं आती, हैं ! धिकार तुम्हें
अरे बहन बेटी तुम्हारी भी है कैसा लगेगा जब
ऐसा उनके साथ हो
एक बार
उसका दु:ख अपने दिल पर ले कर तो देखो।
जिसके साथ नित्य का ऐसा पाप हो
मत निचोड़ो खून किसी का
तुम्हारा भी उसी रंग का है
अरे कुछ अपने कर्मों से भी कमा लो
या लालच सिर्फ पराए धन का ही है।