STORYMIRROR

Ankit Tiwari

Classics

4  

Ankit Tiwari

Classics

मंजिल

मंजिल

1 min
385

सामने मेरे मंजिल खड़ी थी,

पीछे उसकी आवाज पड़ी थीI

वर्षों की मेहनत से यहाँ तक पहुंचा था मैं,

वर्षों की चाहत को भी कैसे भूल सकता था मैंI


ख्वाहिश मंजिल तक पहुँचने की भी थी,

ख्वाहिश उसे अपना बनाने की भी थीI

अगर एक कदम आगे बढाता, तो चाहत रूठ जाती,

गर एक कदम पीछे मुड जाता, तो मेरी मेहनत बिखर जातीI


बस इतना समझ लो कि मैं बहुत ही प्यासा था,

और सामने रखे पानी के गिलास में जहर मिला थाI

अगर पानी पीता तो जहर से मर जाता,

ना पीता तो प्यासा ही मर जाताI


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics