फितरत !
फितरत !
दिल की फितरत भी
बड़ी अजीब होती है
कमबख्त …
धड़कता रहता है
पूरी खामोशी के साथ
अपनी बात भी
कहता है तो चुपचाप
फिर भी कहते हैं लोग
धड़कनें सुनाई देती है
तब धड़कनें ही
सवाल करती है मुझसे -
क्या तुम …
सुन सकती हो हमको ?
सच कहूं -
मैंने तुम्हें कभी नहीं सुना !
तुम्हारी तो ….
एक और ख़ासियत है
बिना खबर दिए ही
तुम बंद भी ….
हो जाते हो चुपचाप !