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Vivek Madhukar

Abstract

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Vivek Madhukar

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विवेक पथ

विवेक पथ

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जिन्होंने हमें गिराया वे हैं कुरीतियाँ ही

जकड़ी रहीं अभी तक हमको अनीतियाँ ही

पर आज तुम्हें ये बन्धन झकझोरने पड़ेंगे

अब मोह रूढ़ियों के   छोड़ने  पड़ेंगे।


अज्ञान में फँसी थी यह ज़िन्दगी की धारा

गन्दला हुआ था पानी दूषित हुआ किनारा

उनको भी ज्ञान-पथ पर अब मोड़ने पड़ेंगे

भटकाव के रास्ते सभी अब छोड़ने पड़ेंगे।


जीवन में स्वार्थ छल का है द्वेष का प्रदूषण

मुश्किल हुआ है जीना जग में अशान्ति भीषण

लेकिन ये सारे काँटे अब तोड़ने पड़ेंगे

नाते विवेक पथ से अब जोड़ने पड़ेंगे।


ऋतु बसन्त आने से पहले पतझड़ आ जाती है

नव शिशु पाने से पहले माँ पीड़ा पाती है

नए भवन के लिए पुराने खण्डहर ढाए जाते

ढाए खण्डहर की छाती पर ही पुनः नए उठाये जाते।


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