कत्थक शिरोमणि
कत्थक शिरोमणि
पंचतत्व में विलीन हो गए
फिर से एक और ध्रुव तारा
घुंघरू की चली गई आत्मा
बस रह गए कुछ धागे।।
नृत्य में जिसने कभी नहीं किया
लड़का लड़की का भेद और
ना ही अमीर गरीब का भेद।
आसमान में जैसे
होता है एक ध्रुव तारा वैसे ही पंडित जी थे
एक ध्रुव तारा
पैरों की थिरकन आंखों की अदा से
दुनिया जीती
और जीता सबका दिल ऐसे महान व्यक्तित्व को समर्पित है
मेरा प्यार भरा यह दिल।।
जिनके सुर ताल में जीवन का है एक लय।
लड़कियां ही सिर्फ होती है नृत्यांगना
इस मिथक को तोड़ा है सिर्फ यही एक ध्रुव तारा।
कौन नहीं है इसके प्रिय।
माधुरी दीक्षित हो या मैं (उर्वशी)
बचपन से ही नृत्य ने ही मन मोहा
इसी मोह ने कुशल नृत्यांगना पुत्री सुदीक्षा को पाया ।।
उर्वशी नाम की एक नृत्यांगना है।
जो इतिहास में जानी जाती
शायद इसी नाम की छुअन से मैं भी हूँ नृत्यांगना
शायद इसीलिए मैं भी जानी जाती।
सहज सरल व्यक्तित्व था जिनका
नृत्य की दुनिया में जैसे साक्षात हो भगवान नटराज ।।
ऐसे महान पुरुष को नृत्यांगना का कर जोड़ प्रणाम ।।