सिर्फ और सिर्फ तुम
सिर्फ और सिर्फ तुम
जमाने को नहीं तुम्हें अपनाया था
हमने सिर्फ और सिर्फ तुम्हें अपना बनाया था
खफा नहीं हम तुम से ना नाराजगी है
तुम से शुरू तुम पर खत्म मेरी कहानियां है
हम मोहब्बत इस कदर तुम्हें मेरी जान करते है
हम तुम्हारे लफ्जों से ही नहीं तुम्हारी नजरों से
समझते है
दिल खोलकर रखो ना रखो हम समझ ही जाते हैं
तुम्हें मेरी हो ये हक हर बार जता जाते है
कभी कहा तो होता तुमने कि क्या खता हम कर गये
कि अब तुम्हारे लिए हम जमाने के गैरों में आ गये
मोहब्बत थी तुम से कोई फिजूल का तमाशा ना था
झुकना झुक ना टूटना बिखर जाना ये तो आम है
हम तो जान तुम्हारे नाम ये जान लुटाते
हमें तुम से बेइंतिहा मोहब्बत करते हैं ये हर बार बताते
हाँ माना राह में मुसाफिर बहुत होगे
पर तेरी जैसे मोहब्बत के कदर दान कहाँ होंगे
मोहब्बत में अगर गिरकर मुझे मेरा यार मिल जाये
तो मुझे मंजूर है मोहब्बत में ऐ मेरे खुदा मुझे मौत भी मिल जाये
हवस ना चाह कभी थी हमें तेरे जिस्म की
हम तो रुह में समाने की चाह थी
मगर पाकिज मेरी निगाहों को तुम पढ़ नहीं पाये
हम तुम से और तुम हम से दूर होते नजर आये
आज फिर मैं तुम्हें और तुम्हारी यादों में खो रहा हूँ
तुम्हारे दिये खतो के एहसास में रो रहा हूँ
मैं फिर वही आज लबों पर लफ्ज ला रहा हूँ
मैं जमाने को नहीं तुम्हें अपना रहा हूँ ।।