एक जीवन यात्रा स्वयं के साथ
एक जीवन यात्रा स्वयं के साथ
था मंद मंद समीर बह रहा,
शीतलता लिए थी चांदनी;
यह मैं ही थी या और कोई।
चल रही पथिक पथगामिनी।।
था और कोई मेरे पीछे,
जिसे मैं थी नहीं पहचानती;
मैं थी धुन की पक्की ।
मंजिल की तरफ थी अविरल चलती।।
वह भी चलती मंजिल की तरफ,
पर पल पल विश्राम लिए चलती;
मंजिल जैसा कुछ था ही नहीं।
वो जीवन पथ जीते आगे बढ़ती।।
मैं मुड़ कर जब उसे देखती,
वो थी दिव्य ऊर्जावती;
आभामय उसका मुखमंडल।
हंसती रहती,चलती रहती
कभी ना थकती।।
स्तब्ध हो मैं खुद को देखूं,
एक थकी जीर्ण काया देखूं;
सोच गहन तब करती हूं।
थोड़ा मनन तब करती हूं।।
वो भी चलती,
मैं भी चलती;
मैं थकती रहती वो थकती ही नही।
जीवन पथ तो उसका भी है,
जीवन पथ तो मेरा भी है।।
छंट गई दिव्य वो चांदनी रात,
बीत गई मनभावन रात;
मंजिल जैसा कुछ था ही नहीं।
बस एक चांदनी यात्रा थी।।
हम दोनो देख एक दूजे को,
मंद मंद मुस्काए;
वो बिल्कुल मेरे जैसी थी।
और मेरे में ही समाए।।
मैने भी झट से पूछा तुम कौन हो मेरी प्रतिबिंब??
हम दोनो ही तो साथ चले।
जब तक ना रैना ढले।।
पर मैं हूं थकी मांदी,
और तुम अभी भी हो दिव्य आभा सी;
वह मंद मंद मुस्कायी।
हौले से मेरा माथा सहलाई।।
ऐ सखी!!!!
तुम सही कह रही मैं ही तुम हो; और तुम ही मैं हूं।
कुदरत हमें भेजती है जीवन यात्रा पर मेरे जैसा ही निर्द्वंद ,उत्साह भरी जिंदगी जीने को।।
पर लोग खुद चुन लेते है ,
अपनी इच्छा से;
अति जिम्मेदार जिंदगी जीने को।
जीवन बचपन से वृद्धावस्था की यात्रा है कोई मंजिल नहीं।।
यदि चाह दे तो हर व्यक्ति,
जिंदादिल है कोई बुजदिल नहीं।
तो चलो सखी !!रात खत्म हुई अब हम तुममे समा जाते है।
एक रौशनी खूबसूरत जिंदगी के लिए जला आते है,
एक आत्म प्रतिबिंब को छोड़कर यहां कोई किसी का नहीं!!!
बस अपना और अपने से जुड़े लोगों का जीवन आलोकित करो,
प्रकाशित करो,
जीवन यात्रा पर आगे बढ़ो।।
प्यार उनसे करो जो तुमसे प्यार करते हैं
पेट उनकी भरो जो वाकई भूखा रहते है।
भरे पेट के लोग तो वक्त निकलते ही एहसान भूल जाते है
भूखे पेट वाले तो जीवन भर दुवा दे जाते हैं !!!!!
वंचितों को दिया दान ही कर्तव्य है,
वही जीवन पथ का वास्तविक गंतव्य है।
जीवन के अंत में बस ये कर्तव्य ही याद आने है
बाकी तो जिंदगी खर्च करने के बहाने है।।
जियो निर्विकार,
खूबसूरत जिंदगी को स्वीकार।
पहले स्वयं से करो प्यार
फिर जीवन से जुड़े रिश्तों को स्वीकार।।