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Kalyani Das

Tragedy Inspirational

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Kalyani Das

Tragedy Inspirational

पतझड़

पतझड़

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क्या ये मौसम है बिछुड़ने का......

शांत स्थिर चुपचाप खड़ा 

जीवन से भरा .....

फिर भी ठूंठ हो चला ..... 

जो था कभी हरा -भरा .....

रंगहीन हो चला ।

न जानेे कितनी पीड़ा

कितना दर्द समेेटे,

फिर भी इक आस लपेटे .....

हर दिन एक -एक पीत - पात झड़ रहे ।

जो शाखाओंं पर झूमते थेे कभी लहरा कर।

न जानेे ये कैसी बेरुखी हवा चली....

सूनी हुई हर डाली -डाली।

न रंग न महक न कोई 

कलरव पक्षियों की ।

शाख से बिछुड़ कर 

कैसे धरा पर गुुुुमसुम पड़े .....

जो रहेे न अब,देखो .....

जीवन कैसे उनको भूूूूल चला.....

शायद रीत यही है प्रकृति की।

कितनी निष्ठुरता.....

बिछड़ गए जो डाली सेे 

भूल कर उनको 

आगे बढ़ने का मौसम है ।

पर......

जुदाई मेंं भी इक मिलन की संगीत है ।

इन्हीं ठूंठ से फिर नई कोंपल फूटेगी,

जीवन फिर से मुुुस्काएगा,

फिर से हरियाली छाएगी।

हर कली फिर से नई 

खुश्बू हवा में फैैलाएगी।

फिर से चिड़ियों का संगीत गूंजेगा....

तितलियां फिर फूलों सेे 

इश्क लड़ाएगी.....।



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